अखंड सौभाग्य और सुखी वैवाहिक जीवन का प्रतीक: कजरी तीज
कजरी तीज का महापर्व
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला अखंड सौभाग्य और सुखी वैवाहिक जीवन का प्रतीक कजरी तीज का पर्व सुहागिन स्त्रियों के लिए अत्यंत पावन और शुभ माना जाता है। भगवान शिव और मां पार्वती को समर्पित यह त्यौहार, वैवाहिक जीवन में प्रेम, विश्वास और स्थिरता लाने के लिए जाना जाता है। उत्तर भारत के कई राज्यों में, खासकर राजस्थान और उत्तर प्रदेश में, यह पर्व विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं पारंपरिक रीति-रिवाजों और सोलह श्रृंगार के साथ दिनभर निर्जला व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र और वैवाहिक जीवन की सुख-शांति की कामना करती हैं।
माता पार्वती की तपस्या
पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या इतनी दृढ़ थी कि अंततः भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। मान्यता है कि यह दिन वही है जब भगवान शिव ने माता पार्वती की तपस्या को स्वीकार किया था। तभी से कजरी तीज का व्रत स्त्रियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यह कथा इस बात का प्रतीक है कि सच्ची श्रद्धा और निष्ठा से किए गए प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाते और दांपत्य जीवन में भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है।
सोलह श्रृंगार सच्ची श्रद्धा और निष्ठा
कजरी तीज का व्रत सिर्फ पति की लंबी उम्र के लिए ही नहीं, बल्कि दांपत्य जीवन में प्रेम, सम्मान और एकता को मजबूत करने के लिए भी किया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं, जो सौभाग्य और समर्पण का प्रतीक है। व्रत के माध्यम से महिलाएं अपने जीवन साथी के प्रति अपनी श्रद्धा और सम्मान प्रकट करती हैं। यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते को और भी गहरा और मजबूत बनाता है।
अत्यंत पवित्र पूजा विधि
कजरी तीज की पूजा विधि अत्यंत पवित्र और विधिवत होती है। इस दिन प्रातः सूर्योदय से पहले स्नान करके महिलाएं स्वच्छ और शुभ वस्त्र धारण करती हैं। पूजा स्थल को पवित्र करके एक सुंदर मंडप सजाया जाता है, जिसमें भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की मूर्ति या चित्र स्थापित किए जाते हैं। पूजा की शुरुआत भगवान गणेश की स्तुति से होती है, उसके बाद भगवान शिव को गंगाजल, दूध, शहद और बेलपत्र अर्पित किए जाते हैं। माता पार्वती को सिंदूर, कुमकुम, चूड़ी, बिंदी और अन्य श्रृंगार सामग्री अर्पित की जाती है। पूरी पूजा के दौरान ‘ॐ नमः शिवाय’ और ‘ॐ पार्वत्यै नमः’ मंत्रों का जप किया जाता है।
पारंपरिक कजरी तीज गीत
कजरी तीज राजस्थान की लोक-संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। इस अवसर पर महिलाएं एकत्र होकर पारंपरिक कजरी गीत गाती हैं और झूला झूलती हैं, जिसे 'झूला उत्सव' कहा जाता है। यह उत्सव विशेष रूप से जयपुर, बूंदी और अन्य शहरों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा, इस दिन 'सिंधारा' भेजने की भी परंपरा है, जिसमें बेटी के ससुराल में उसकी शादी के बाद पहला सावन आने पर उसके माता-पिता की ओर से उपहार भेजे जाते हैं। यह पर्व लोकगीतों, झूलों और पारंपरिक पकवानों के साथ भारतीय संस्कृति की सुंदरता को दर्शाता है।
























