अहिल्याबाई होल्कर की पुण्यतिथि: महान वीरांगना और लोकमाता
लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर जी
न्याय, धर्म, करुणा और त्याग की प्रतिमूर्ति, महान वीरांगना और लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर जी की पुण्यतिथि पर उन्हें कोटि-कोटि नमन। 13 अगस्त 1795 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनका त्यागमय जीवन और महान कार्य आज भी महिला सशक्तीकरण और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का एक अमिट प्रकाश स्तंभ है। उन्होंने न केवल एक कुशल शासिका के रूप में अपने राज्य की रक्षा की, बल्कि भारत भर में सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक उत्थान के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के चौंडी गांव
अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के चौंडी गांव में हुआ था। उनके पिता, मनकोजी शिंदे, गांव के पाटिल थे। उस दौर में जहां लड़कियों की शिक्षा आम नहीं थी, वहीं अहिल्याबाई को उनके पिता ने पढ़ना-लिखना सिखाया। उनकी विनम्रता और धार्मिक प्रवृत्ति से मराठा सूबेदार मल्हार राव होल्कर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने पुत्र खंडेराव होल्कर से उनका विवाह करवाया।
राजकाज और सैन्य रणनीति की शिक्षा
अहिल्याबाई का जीवन चुनौतियों से भरा रहा। शादी के कुछ सालों बाद ही 1754 में कुंभेर के युद्ध में उनके पति खंडेराव होल्कर की मृत्यु हो गई। उस समय सती प्रथा का प्रचलन था, और अहिल्याबाई सती होने के लिए तैयार थीं, लेकिन उनके ससुर मल्हार राव होल्कर ने उन्हें ऐसा करने से रोका। मल्हार राव ने अपनी बहू की योग्यता को पहचाना और उन्हें राजकाज और सैन्य रणनीति की शिक्षा दी। लेकिन इसके कुछ समय बाद ही 1766 में मल्हार राव का निधन हो गया। इसके बाद उनके पुत्र माले राव होल्कर ने राज संभाला, पर दुर्भाग्यवश 6 महीने बाद ही उनकी भी मृत्यु हो गई। इन त्रासदियों के बावजूद, अहिल्याबाई ने हार नहीं मानी और होलकर वंश की बागडोर अपने हाथों में ली।
इंदौर की राजगद्दी संभाली
1767 में अहिल्याबाई ने इंदौर की राजगद्दी संभाली और महेश्वर को अपनी राजधानी बनाया। उनका शासनकाल लगभग 30 वर्षों तक चला। उन्होंने अपने शासन को रामराज्य के समान बताया। वे व्यक्तिगत खर्चों के लिए कभी भी राजकोष का उपयोग नहीं करती थीं, बल्कि अपनी निजी संपत्ति का इस्तेमाल करती थीं। उनके शासन में भ्रष्टाचार न्यूनतम था और वे सभी के साथ समान न्याय करती थीं। उन्होंने किसानों, व्यापारियों, सैनिकों और विद्वानों के लिए समान नीतियां बनाईं। सूखा या बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं में वे कर माफ कर देती थीं।
सेनापति तुकोजी राव होल्कर
अहिल्याबाई एक कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ एक महान योद्धा भी थीं। उन्होंने अपने राज्य को आक्रमणकारियों और लुटेरों से बचाने के लिए स्वयं सेना का नेतृत्व किया। उन्होंने अपने सेनापति तुकोजी राव होल्कर के साथ मिलकर कई लड़ाइयां लड़ीं और हमेशा जीत हासिल की। उन्होंने यह भी साबित किया कि एक महिला भी युद्ध के मैदान में उतनी ही सक्षम हो सकती है, जितनी कि कोई पुरुष। उन्होंने राज्य को मजबूत करने के लिए एक महिला सेना की भी स्थापना की थी।
तीर्थ स्थलों पर मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया
अहिल्याबाई ने सिर्फ अपने राज्य तक ही सीमित नहीं रहीं, बल्कि पूरे भारत में धर्म और संस्कृति के उत्थान के लिए काम किया। उन्होंने भारत भर के प्रमुख तीर्थ स्थलों और स्थानों पर सैकड़ों मंदिरों, घाटों, कुओं और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया। उन्होंने सोमनाथ, काशी विश्वनाथ, रामेश्वरम, द्वारका, बद्रीनाथ और जगन्नाथपुरी जैसे तीर्थ स्थलों पर मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया। उन्होंने भूखों के लिए अन्नसत्र और प्यासों के लिए प्याऊ भी बनवाए। उनके इन कार्यों के कारण उन्हें "लोकमाता" और "पुण्यश्लोक" जैसी उपाधियां मिलीं।
संरक्षण में महेश्वर कला और साहित्य
अहिल्याबाई स्वयं विद्वान और धार्मिक थीं। उन्होंने कई विद्वानों, कवियों और कलाकारों को अपने दरबार में संरक्षण दिया। उनके संरक्षण में महेश्वर कला और साहित्य का एक प्रमुख केंद्र बन गया था। उनके शासनकाल को शांति और समृद्धि का युग माना जाता है। उनके निधन के बाद भी, उनकी विरासत आज भी जीवित है और उनके द्वारा बनवाए गए मंदिर और घाट उनकी महानता की गवाही देते हैं।
























