दादा से पोते तक, तीन पीढ़ियों की बुलंद आवाज: लंकापति रावण

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पराजय का एक विराट प्रतीक
भारतीय संस्कृति में रावण का चरित्र सिर्फ एक नकारात्मक भूमिका नहीं है, बल्कि यह शक्ति, अहंकार और पराजय का एक विराट प्रतीक है। बीकानेर में दशहरा महोत्सव के दौरान, एक परिवार पिछले 68 वर्षों से इस विशालकाय चरित्र को जीवंत कर रहा है। 'रावण परिवार' के नाम से ख्याति अर्जित कर चुके आहूजा परिवार की यह विरासत पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। यह समर्पण बीकानेर के दशहरा उत्सव को देश भर में एक अद्वितीय पहचान देता है।

68 वर्षों की परंपरा
बीकानेर में दशहरे के दौरान रावण की भूमिका निभाने की यह परंपरा 68 वर्षों से चली आ रही है। आहूजा परिवार के सदस्य के. कुमार आहूजा के अनुसार, उनका परिवार लगातार दशहरा महोत्सव समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में रावण का अभिनय करता आ रहा है। यह पारिवारिक विरासत बीकानेर के सांस्कृतिक और कलात्मक इतिहास का एक अविभाज्य अंग बन गई है।

दादाजी माघोदास आहूजा ने रखी नींव
परिवार में रावण बनने की इस अनूठी परंपरा की शुरुआत के. कुमार आहूजा के दादाजी माघोदास आहूजा ने की थी। उन्होंने लगभग बीस वर्षों तक इस चुनौतीपूर्ण भूमिका को निभाया। माघोदास आहूजा की श्रेष्ठ अभिनय क्षमता और उनकी दमदार, बुलंद आवाज ने रावण के चरित्र को सजीवता प्रदान की, जिसने इस परंपरा को शहरवासियों के बीच मजबूती दी।

पूर्व आयकर अधिकारी
दादाजी के बाद, उनके पुत्र और पूर्व आयकर अधिकारी शिवाजी आहूजा ने इस विरासत को आगे बढ़ाया। लगातार पच्चीस वर्षों तक उन्होंने रावण की भूमिका को निभाया। शिवाजी आहूजा के उत्कृष्ट अभिनय, प्रभावशाली कला और गूँजदार आवाज ने इस किरदार को एक नया आयाम दिया। उनके समर्पण ने बीकानेर के दशहरा उत्सव को ख्यातिनाम बनाने में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया।

कला के प्रति गहरी आस्था
रावण की इस गौरवशाली परंपरा को वर्तमान पीढ़ी में शिवाजी आहूजा के दत्तक पुत्र और बीकानेर फ्रंटियर के संपादक के. कुमार आहूजा संभाल रहे हैं। वह पिछले 23 वर्षों से इस दायित्व को निभा रहे हैं। इस प्रकार, के. कुमार आहूजा लगातार तीसरी पीढ़ी के रूप में रावण का किरदार निभाकर अपनी पारिवारिक परम्परा को बड़े समर्पण और कला के प्रति गहरी आस्था के साथ आगे बढ़ा रहे हैं।

पीढ़ियों के सामूहिक समर्पण का परिणाम
बीकानेर के दशहरा महोत्सव का वर्तमान भव्य स्वरूप कई पीढ़ियों के सामूहिक समर्पण का परिणाम है। इसमें दशहरा महोत्सव समिति के पदाधिकारियों, सदस्यों और कलाकारों की निरंतर मेहनत निहित है। इस सामूहिक प्रयास के कारण ही आज बीकानेर का दशहरा उत्सव देश के ख्यातनाम उत्सवों में गिना जाता है, जो सांस्कृतिक विरासत को सहेजने के महत्व को दर्शाता है।

सकारात्मक और प्रशासनिक कदम
बीकानेर दशहरा महोत्सव की एक खास विशेषता यह है कि अधिक से अधिक जनता की सुविधा के लिए रावण दहन का आयोजन चार अलग-अलग स्थानों पर चार कमेटियों द्वारा किया जाता है। यह निर्णय किसी आपसी मनमुटाव या खींचतान के कारण नहीं लिया गया है, बल्कि जन-सुविधा सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया एक सकारात्मक और प्रशासनिक कदम है।

राष्ट्रीय उत्सव को अद्वितीय पहचान
आहूजा परिवार ने रावण की भूमिका को सिर्फ एक अभिनय नहीं माना है, बल्कि इसे सांस्कृतिक सेवा के रूप में अपनाया है। उनकी 68 वर्षों पुरानी यह परंपरा बीकानेर की सामाजिक और कलात्मक एकजुटता का प्रतीक है। 'रावण परिवार' के रूप में उनकी यह अनूठी ख्याति यह सिद्ध करती है कि एक स्थानीय परिवार ने किस तरह एक राष्ट्रीय उत्सव को अद्वितीय पहचान प्रदान की है। बीकानेर में साल-दर-साल दशहरा पर्व का आकार और भव्यता बढ़ती गई। इसी के साथ, रावण के पुतले की ऊँचाई भी बढ़ती गई। उस दौर में रामलीला और दशहरा के प्रति लोगों में बहुत अधिक उत्साह रहता था, जिसके चलते पूरी टीम महीना भर पहले से ही इसकी जोरदार तैयारी में जुट जाती थी। - अजय त्यागी

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