पहली बार जला बिजली का बल्ब: आज़ादी के 78 साल
धारा-पोरिए के लिए बिजली और रोशनी
आज़ादी के इतने दशक बाद तक यहां तीन पीढ़ियों ने अंधेरे और कठिनाइयों में जीवन काटा। बच्चों की शिक्षा से लेकर बुजुर्गों की सुरक्षा तक, हर छोटा-बड़ा काम सूरज की रोशनी पर निर्भर था। लेकिन अब इस गांव की तस्वीर बदल गई है। तमाम चुनौतियों को पार करते हुए धारा-पोरिए में बिजली का पहला बल्ब जला, जिसकी खुशी से पूरा गांव रोशनी में नहा गया और बच्चों की तालियों से पहाड़ गूंज उठे। देश आज भले ही 5जी और आधुनिक सुविधाओं के युग में हो, लेकिन हिमाचल प्रदेश की सैंज घाटी के एक दुर्गम गांव धारा-पोरिए के लिए 'बिजली' और 'रोशनी' आज भी एक सपने से कम नहीं थी।
संघर्ष का अंतिम विराम
धारा-पोरिए गांव तक बिजली पहुंचाना एक बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण कार्य था, क्योंकि यहां तक पहुँचने के लिए आज भी कोई सड़क नहीं है। खड़ी चढ़ाई और संकरी पगडंडियों के रास्ते से होते हुए शैंशर से करीब चार किलोमीटर की दूरी तक बिजली के दस खंभों को ढोकर लाया गया और स्थापित किया गया। इस दुर्गम प्रयास के बाद चार परिवारों वाले इस छोटे से गांव में पहली बार बिजली पहुंची। बुजुर्गों का चुपचाप खड़े रहकर आंसू बहाना यह दर्शाता है कि यह उपलब्धि उनके लिए महज़ एक सरकारी सुविधा नहीं, बल्कि तीन पीढ़ियों के लंबे संघर्ष का अंतिम विराम है।
जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव
बिजली के आगमन के साथ ही धारा-पोरिए गांव में पहली बार मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट की सुविधा भी पहुंच गई है। युवाओं ने तुरंत वीडियो कॉल करने का प्रयास किया, जो डिजिटल दुनिया से उनके जुड़ने की तत्परता को दर्शाता है। बुजुर्ग चैनू राम ने अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि देश मशीनों के युग में पहुंच गया, लेकिन वे मोमबत्ती के सहारे ही जीवन जी रहे थे, और बीमारी में तो सिर्फ भगवान ही मालिक थे। ग्रामीणों का मानना है कि अब बच्चों की पढ़ाई आसान होगी और महिलाओं के लिए रात में काम निपटाना सुरक्षित हो जाएगा, जिससे गांव की पूरी जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव आएगा।
सरकार और प्रशासन
एक ओर धारा-पोरिए में रोशनी आई है, वहीं दूसरी ओर कुल्लू जिले के चारों उपमंडलों कुल्लू, मनाली, बंजार और आनी में अब भी 20 से अधिक ऐसे गांव और उपगांव हैं जो बिजली से वंचित हैं। सैंज घाटी के ही दुर्गम गांव शाक्टी, मरौड़ और शुगाड़ जैसे क्षेत्रों के ग्रामीण अभी भी इस डिजिटल युग में अंधेरे में जीवन यापन कर रहे हैं। ग्रामीण फूला देवी और टेक चंद जैसे लोगों ने अपनी परेशानियां साझा करते हुए बताया कि बिजली के बिना हर काम सूरज की गति पर निर्भर था, और परीक्षा के दिनों में बच्चों के लिए रात में पढ़ना संभव नहीं होता था। यह स्थिति सरकार और प्रशासन के सामने शेष अंधेरे गांवों तक बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने की एक बड़ी चुनौती पेश करती है।
























