भारतीय शास्त्रीय नृत्य में ऐतिहासिक उपलब्धि, 170 घंटे लगातार नृत्य कर बनीं दुनिया की पहली कलाकार

मंगलुरु
(कर्नाटक) –
भारतीय शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम को वैश्विक मंच
पर गौरवान्वित करते हुए, सेंट
एलॉयसियस कॉलेज (मान्य विश्वविद्यालय) की छात्रा रेमोना
एवेट परेरा ने 170 घंटे तक लगातार
भरतनाट्यम परफॉर्मेंस कर Golden Book of World
Records में अपना नाम दर्ज
करा लिया है। यह
प्रदर्शन 21 जुलाई से शुरू होकर
28 जुलाई को सम्पन्न हुआ।
बीए अंतिम वर्ष की छात्रा रेमोना परेरा अब विश्व की पहली ऐसी कलाकार बन गई हैं जिन्होंने इतनी लंबी अवधि तक लगातार भरतनाट्यम प्रस्तुत किया है। उनका यह प्रयास न केवल व्यक्तिगत जीत है, बल्कि भारतीय कला और संस्कृति को भी वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने वाला है।
तीन
साल की उम्र में शुरू हुआ नृत्य का सफर, गुरु श्रीविद्या मुरलीधर से मिली सीख
रेमोना
की कला यात्रा मात्र
तीन वर्ष की आयु
में शुरू हुई थी,
जब उन्होंने भरतनाट्यम की प्रारंभिक शिक्षा
गुरु श्रीविद्या मुरलीधर से लेनी शुरू
की। 2019 में उन्होंने ‘रंगप्रवेश’
कर अपनी पहली औपचारिक
प्रस्तुति दी थी, जो
किसी भी भरतनाट्यम डांसर
के करियर का अहम मोड़
होता है। इसके बाद
उन्होंने कभी पीछे मुड़कर
नहीं देखा।
170 घंटे
का यह रिकॉर्ड सिर्फ
एक भौतिक प्रदर्शन नहीं था, यह
रेमोना की आत्मा, अनुशासन
और समर्पण का प्रमाण भी
था। लगातार घंटों तक स्टेज पर
विभिन्न भावों, मुद्राओं और तालों को
एकाग्रता के साथ निभाना
किसी साधना से कम नहीं।
लाइव
स्ट्रीमिंग में जुड़े हजारों दर्शक, कला जगत से मिली सराहना
रेमोना
के इस ऐतिहासिक डांस
परफॉर्मेंस को न सिर्फ
स्थानीय लोग देखने पहुंचे,
बल्कि हजारों दर्शक देश-विदेश से
इसे ऑनलाइन लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए भी
देखते रहे। उनके प्रदर्शन
के समापन पर श्रोताओं ने
खड़े होकर तालियों के
साथ उनका सम्मान किया,
कई दर्शकों की आंखें नम
हो गईं।
कला
और संस्कृति के क्षेत्र की कई बड़ी
हस्तियों ने रेमोना को
बधाई दी। उनके कॉलेज
और शिक्षकों ने भी इसे
संस्थान के लिए गर्व
का क्षण बताया और
उन्हें विशेष रूप से सम्मानित
किया गया।
अब रेमोना परेरा का अगला सपना
है भरतनाट्यम को वैश्विक मंच पर ले जाना और नई पीढ़ी
को इस कला की
ओर आकर्षित करना। उनका मानना है
कि भारतीय नृत्य केवल मनोरंजन नहीं,
बल्कि आत्म-अनुशासन और
संस्कृति की जीवंत अभिव्यक्ति
है।
रेमोना
का यह रिकॉर्ड सिर्फ
एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, यह
भारत की समृद्ध परंपरा
और शास्त्रीय नृत्य शैली की अद्वितीयता
का प्रतीक बन गया है।