मतदाता सूची पुनरीक्षण के बाद जारी ड्राफ्ट वोटर लिस्ट: बिहार विधानसभा चुनाव

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पुनरीक्षण के बाद जारी ड्राफ्ट वोटर लिस्ट
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाताओं के विशेष गहन पुनरीक्षण (Bihar SIR) की प्रक्रिया जारी है, लेकिन इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक दलों की खामोशी हैरान करने वाली है। जहाँ एक ओर आम मतदाता अपनी दावे-आपत्तियों के साथ सक्रियता दिखा रहे हैं, वहीं राज्य के छह राष्ट्रीय और छह क्षेत्रीय दलों में से किसी ने भी अब तक एक भी दावा या आपत्ति दर्ज नहीं कराई है।

राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं
निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाताओं के पुनरीक्षण के बाद जारी ड्राफ्ट वोटर लिस्ट को लेकर राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं रोज सामने आ रही हैं, लेकिन ये प्रतिक्रियाएं केवल मौखिक ही हैं। चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया पर सवाल उठाने वाला कोई भी राजनीतिक दल कागज पर सामने नहीं आया है। यह विरोधाभास दर्शाता है कि चुनावी मुद्दों पर बयानबाजी तो हो रही है, लेकिन आधिकारिक तौर पर कोई भी दल इस प्रक्रिया का हिस्सा बनने से बच रहा है।

सक्रिय आम मतदाता
राजनीतिक दलों की खामोशी के विपरीत, आम मतदाता इस प्रक्रिया में पूरी तरह से सक्रिय हैं। 1 अगस्त से मतदाताओं के पुनरीक्षण के बाद जारी ड्राफ्ट वोटर लिस्ट पर दावे-आपत्ति की मांग की गई थी। 11 अगस्त तक, आम मतदाताओं ने नाम हटाने या शामिल करने को लेकर 10,570 दावे-आपत्तियां दर्ज कराई हैं। यह आंकड़ा बताता है कि आम जनता अपने मताधिकार के प्रति कितनी जागरूक है। इनमें से 127 आपत्तियों का निस्तारण भी किया जा चुका है, जबकि बाकी पर प्रक्रिया जारी है।

चुनाव आयोग
चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के 54,432 नए मतदाताओं ने मतदाता सूची में अपना नाम जोड़ने के लिए फॉर्म 6 जमा किए हैं। यह दिखाता है कि युवा पीढ़ी अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने के लिए उत्सुक है। यह एक सकारात्मक संकेत है जो लोकतंत्र में युवाओं के विश्वास को दर्शाता है। यह आंकड़ा राजनीतिक दलों के लिए भी एक संदेश है कि वे मतदाताओं की जरूरतों और इच्छाओं को समझें। यह चौंकाने वाला है कि सत्ताधारी भाजपा, जिसने 53,338 बूथ लेवल एजेंट (BLA) तैनात किए हैं, और प्रमुख विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (RJD), जिसने 47,506 BLA नियुक्त किए हैं, दोनों ने ही एक भी दावा या आपत्ति दर्ज नहीं कराई है।

राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी
राजनीतिक दलों का इस प्रक्रिया से दूर रहना भविष्य में चुनाव परिणामों पर सवाल खड़े कर सकता है। अगर चुनाव से पहले ही मतदाता सूची में सुधार के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाता, तो यह चुनाव की विश्वसनीयता पर भी प्रभाव डाल सकता है। एक स्वस्थ लोकतंत्र में सभी हितधारकों को प्रक्रिया का हिस्सा बनना चाहिए। यह स्थिति न केवल राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी पर सवाल उठाती है, बल्कि चुनाव आयोग के लिए भी यह एक चुनौती है कि वह सभी को इस प्रक्रिया में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करे।

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