मारवाड़ को मुगलों से बचाया: वीर शिरोमणि दुर्गादास राठौड़
मारवाड़ के महान सपूत और वीर शिरोमणि
मारवाड़ के महान सपूत और वीर शिरोमणि दुर्गादास राठौड़ की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन। 13 अगस्त 1638 को जन्मे इस महान योद्धा ने अपनी वीरता, त्याग और मातृभूमि के प्रति अटूट निष्ठा से एक ऐसा इतिहास रचा, जो युगों-युगों तक आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा। वे सिर्फ एक सेनापति नहीं, बल्कि मारवाड़ की पहचान थे, जिन्होंने महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद औरंगजेब जैसे क्रूर मुगल शासक को चुनौती दी और राठौड़ वंश की रक्षा की।
वीरता का परिचय
दुर्गादास राठौड़ का जन्म मारवाड़ के शासक महाराजा जसवंत सिंह के मंत्री आसकरण राठौड़ के यहाँ हुआ था। उनकी माता का नाम नेतकंवर बाई था। बचपन में ही उनकी माता ने उन्हें स्वाभिमान और देशभक्ति के संस्कार दिए। एक घटना के बाद, जब उन्होंने अपने खेत की फसल बर्बाद करने वाले ऊंटों के चरवाहे को मार दिया, तो महाराजा जसवंत सिंह उनके साहस से प्रभावित हुए और उन्हें अपने दरबार में स्थान दिया। दुर्गादास ने महाराजा जसवंत सिंह की सेवा में रहते हुए अपनी वीरता का परिचय दिया और उनकी स्वामीभक्ति ने उन्हें जल्द ही महाराजा का विश्वासपात्र बना दिया।
कूटनीति और वीरता का प्रदर्शन
1678 में महाराजा जसवंत सिंह की अफगानिस्तान में मृत्यु हो गई। उस समय उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था, जिसका फायदा उठाकर मुगल शासक औरंगजेब ने मारवाड़ पर कब्जा करने की कोशिश की। उसने जोधपुर को खालसा घोषित कर दिया और वहां जजिया कर लगा दिया। हालांकि, महाराजा की दो रानियों ने दो बेटों को जन्म दिया, जिनमें से एक का नाम अजीत सिंह था। औरंगजेब ने अजीत सिंह को मारवाड़ का वैध उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया और उन्हें दिल्ली में ही बंदी बनाना चाहा। इसी समय दुर्गादास राठौड़ ने अपनी कूटनीति और वीरता का प्रदर्शन किया।
मारवाड़ का उद्धारक
महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद, दुर्गादास राठौड़ ने ही उनके नवजात पुत्र अजीत सिंह की रक्षा का संकल्प लिया। उन्होंने गर्भवती रानियों को सती होने से रोका और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर ले गए। जब औरंगजेब ने अजीत सिंह को दिल्ली में बंदी बनाना चाहा, तो दुर्गादास ने योजना बनाकर उन्हें सुरक्षित मारवाड़ पहुंचाया। अगले 30 साल तक दुर्गादास राठौड़ ने अजीत सिंह को औरंगजेब की नजरों से बचाकर रखा और उन्हें शिक्षा और युद्ध कौशल में निपुण बनाया। इस दौरान उन्होंने कई बार वेश बदलकर अजीत सिंह की रक्षा की, जिसके कारण उन्हें 'मारवाड़ का उद्धारक' कहा जाता है।
मुगलों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध
अजीत सिंह की रक्षा करते हुए, दुर्गादास ने मुगलों के खिलाफ एक लंबा और कठिन गुरिल्ला युद्ध लड़ा। उन्होंने अपनी छोटी सी सेना के साथ मुगलों की विशाल सेना को कई बार हराया और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर किया। उनकी छापामार रणनीति इतनी सफल थी कि औरंगजेब भी उनसे परेशान हो गया था। दुर्गादास ने मुगल सेना की रसद का मार्ग बंद कर दिया और उन्हें अरावली के जंगलों में भटकने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने औरंगजेब के विद्रोही पुत्र शहजादा अकबर को भी अपनी ओर मिला लिया और मेवाड़ के महाराणा राज सिंह के साथ मिलकर हिंदू एकता को मजबूत किया।
मुगल अधिकारियों को कर देने के लिए मजबूर किया
दुर्गादास राठौड़ ने मुगलों के खिलाफ कई जीत हासिल की। उन्होंने मुगल अधिकारियों को कर देने के लिए मजबूर किया, जिसे 'चौथ' कहा जाता था। 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद, दुर्गादास ने इस मौके का फायदा उठाया और जोधपुर पर धावा बोल दिया। उन्होंने मुगल प्रभाव को खत्म किया और वहां से इस्लामी शासकों की फौज को खदेड़ दिया। उन्होंने जोधपुर को पूरी तरह से मुगलों से मुक्त कराया और अजीत सिंह को जोधपुर का महाराजा घोषित किया।
त्याग, निष्ठा और देशभक्ति
दुर्गादास राठौड़ का जीवन त्याग, निष्ठा और देशभक्ति का एक अद्भुत उदाहरण है। उन्होंने अपना पूरा जीवन मारवाड़ के राठौड़ वंश की रक्षा और सम्मान के लिए समर्पित कर दिया। उनकी वीरता और रणनीतिक कौशल ने औरंगजेब जैसे शासक को भी घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। राजस्थान में आज भी यह कहावत प्रसिद्ध है: "माई एहड़ौ पूत जण, जेहड़ौ दुर्गादास" यानी "माता ऐसा पुत्र पैदा कर, जैसा दुर्गादास था।"-अजय त्यागी
























