राधा अष्टमी का जश्न ऐतिहासिक - बरसाना
श्री राधा रानी
ब्रह्म मुहूर्त में सुबह 4 बजे पंचामृत से राधा रानी का अभिषेक शुरू हुआ और भक्ति के सुरों में डूबे देवस्थल में हजारों श्रद्धालु ने विधिविधान से पूजा-अर्चना की, जिसके बाद मंदिर की घंटियां और भजन-कीर्तन की गूंज वातावरण को आध्यात्मिक रंगों से भर गई। पूरे बरसाना को फूलों, रोशनी और रंगों से सजाया गया। बरसाना के श्री राधा रानी मंदिर में राधा अष्टमी का जश्न ऐतिहासिक भव्यता, आस्था के साथ मनाया गया।
ब्रह्मा जी के चार मुखों का प्रतीक
श्री राधा रानी मंदिर मथुरा जिले के बरसाना कस्बे में ऊंची पर्वत चोटी पर स्थित है। इस स्थान पर राधारानी जी का जन्म हुआ था, इसका प्राचीन इतिहास 5000 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ द्वारा मंदिर निर्माण से जुड़ा है, मंदिर के आसपास भानगढ़, मानगढ़, दानगढ़ और विलासगढ़ की चार पहाड़ियां हैं जिन्हें ब्रह्मा जी के चार मुखों का प्रतीक माना जाता है। बाद में 1675 ई. में राजा बीर सिंह देव ने मंदिर को भव्य स्वरूप दिया।
राधाष्टमी उत्सव की अलग ही रौनक रहती है। राधाष्टमी को राधा जी के महल को सजाया जाता है, सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पंचामृत अभिषेक तथा लड्डुओं और छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। भोग को मोर को खिलाया जाता है। बड़ी संख्या में भक्त परिक्रमा लगाते हैं और पूरे बरसाना में मेला जैसा माहौल बना रहता है। सभी श्रद्धालु प्रसाद व दर्शन लाभ लेने के लिए कतारबद्ध रहे मंदिर परिसर में दर्शन और सुरक्षा व्यवस्था के विशेष इंतजाम किए गए।
























