लाडनूं में 15 दिवसीय पांडुलिपि प्रशिक्षण शिविर का समापन: केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय
जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय
राजस्थान के लाडनूं स्थित जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के ज्ञान भारत मिशन के तहत आयोजित 15 दिवसीय पांडुलिपि प्रशिक्षण शिविर का हाल ही में समापन हुआ। इस समारोह में विशिष्ट अतिथि डॉ. नितिन गोयल ने भारतीय ज्ञान परंपरा की अमूल्य धरोहर पांडुलिपियों के अध्ययन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के प्रयोग पर एक महत्वपूर्ण पक्ष रखा। उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल पांडुलिपियों का डिजिटाइजेशन (अंकीयकरण) उन्हें सुरक्षित कर सकता है, लेकिन उनके अंदर छिपे सारांश और ज्ञान का उपयोग सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न भाषाविदों का सहयोग अनिवार्य है।
डॉ. नितिन गोयल
अपने उद्बोधन में डॉ. नितिन गोयल ने इस बात पर जोर दिया कि पांडुलिपियों के अध्ययन में AI का सफल प्रयोग तभी संभव है जब इसमें विभिन्न भाषाविदों की सक्रिय भागीदारी हो। उन्होंने कहा कि AI का प्रयोग केवल तभी सक्षम स्तर पर तैयार हो सकता है जब भाषा विशेषज्ञ इसे पांडुलिपियों में निहित जटिल लिपियों और भाषाओं को समझने के लिए प्रशिक्षित करें। मात्र डिजिटलीकरण से उनकी सुरक्षा तो हो जाएगी, लेकिन उनमें छिपे ज्ञान तक पहुँचना संभव नहीं होगा।
बहुमूल्य पांडुलिपियाँ
डॉ. गोयल ने बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा की ये बहुमूल्य पांडुलिपियाँ अपभ्रंश, पाली, संस्कृत, देवनागरी, राजस्थानी आदि विभिन्न भाषाओं और लिपियों में सुरक्षित हैं। उन्होंने भारत में इनकी अनुमानित संख्या लगभग एक करोड़ बताई, जो संरक्षण और उपयोगिता के लिए एक विशाल चुनौती पेश करती है। इस संख्या और भाषाई विविधता को देखते हुए ही विशेषज्ञ भाषाविदों की आवश्यकता और अधिक बढ़ जाती है।
प्राचीन भारतीय ज्ञान
पांडुलिपियों के अध्ययन में AI के प्रयोग की दिशा में सोचना शुरू करने वाला जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय राजस्थान का पहला विश्वविद्यालय है। इस पहल से पता चलता है कि यह संस्थान प्राचीन भारतीय ज्ञान को आधुनिक तकनीक के माध्यम से भविष्य के लिए सुलभ बनाने की दिशा में गंभीरता से कार्य कर रहा है। यह अन्य शैक्षणिक संस्थानों के लिए भी एक प्रेरणा का स्रोत बन सकता है।
संस्कृत के भाषाविदों की महत्वपूर्ण आवश्यकता
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर मुरली मनोहर पाठक ने अपने संस्कृत उद्बोधन में इस बात पर प्रकाश डाला कि भारतीय ज्ञान परंपरा की पांडुलिपियों में से लगभग 87% पांडुलिपियाँ संस्कृत भाषा में हैं। उन्होंने इन ग्रंथों के रहस्य जानने और उनके अनुवाद के लिए संस्कृत के भाषाविदों की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर बल दिया। जैन विश्व भारती के कुलगुरु प्रोफेसर दूगड़ ने ऐसे शिविरों की महत्ता को स्वीकार करते हुए इन्हें भविष्य में भी आयोजित करवाए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
समापन समारोह
इस महत्वपूर्ण प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर मुरली मनोहर पाठक, जैन विश्व भारती के कुलगुरु प्रोफेसर बी. आर. दूगड़, ज्ञान भारतम् मिशन के निदेशक श्री अनिर्बन दास, वरिष्ठ आचार्य श्री दामोदर शास्त्री, समानी डॉ. संगीत प्रज्ञा जी एवं जिनेंद्र कुमार जैन उपस्थित थे। शिविर में मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली सहित चार राज्यों के प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया, जिससे इसकी राष्ट्रीय पहुँच सुनिश्चित हुई
























