लॉ छात्र को परीक्षा में बैठने या अगले सेमेस्टर में पदोन्नति से नहीं रोका जाएगा: दिल्ली हाइकोर्ट

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कानून की शिक्षा
दिल्ली हाइकोर्ट ने कानून की शिक्षा ले रहे छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और शैक्षणिक भविष्य को लेकर एक अत्यंत महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने सोमवार को आदेश दिया कि देश के किसी भी मान्यता प्राप्त लॉ कॉलेज में न्यूनतम उपस्थिति (अटेंडेंस) की कमी के कारण किसी भी छात्र को परीक्षा में बैठने या अगले सेमेस्टर में पदोन्नति से नहीं रोका जाएगा। यह ऐतिहासिक निर्णय, 2016 में कानून छात्र सुशांत रोहिल्ला की आत्महत्या के बाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शुरू की गई एक स्वप्रेरणा याचिका (Suo Motu Petition) पर सुनवाई करते हुए आया है, जिसे बाद में हाइकोर्ट को स्थानांतरित कर दिया गया था।

कानून छात्र सुशांत रोहिल्ला
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और न्यायमूर्ति शर्मा की पीठ ने फैसला सुनाते हुए सख्त टिप्पणी की। पीठ ने कहा कि, "शिक्षा के मानदंडों को, विशेष रूप से कानूनी शिक्षा के मामले में, इतना सख्त नहीं बनाया जाना चाहिए कि वे मानसिक आघात का कारण बनें, किसी छात्र की मृत्यु की तो बात ही छोड़ दें।" यह मामला एमिटी के तीसरे वर्ष के कानून छात्र सुशांत रोहिल्ला से संबंधित है, जिन्होंने अगस्त 2016 में आत्महत्या कर ली थी। कथित तौर पर कॉलेज ने उन्हें आवश्यक उपस्थिति की कमी के कारण सेमेस्टर परीक्षाओं में बैठने से रोक दिया था। सुशांत ने अपने पीछे एक नोट छोड़ा था, जिसमें उन्होंने खुद को "असफल" बताया था और लिखा था कि वह जीना नहीं चाहते।

अनिवार्य उपस्थिति मानदंडों में संशोधन
हाइकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को अनिवार्य उपस्थिति मानदंडों में संशोधन करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि बीसीआई को छात्रों के जीवन और मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए छात्र निकायों, अभिभावकों और शिक्षकों सहित सभी हितधारकों के साथ शीघ्र परामर्श करना चाहिए। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि परामर्श पूरा होने तक, किसी भी लॉ कॉलेज या संस्थान को न्यूनतम उपस्थिति के आधार पर छात्र को परीक्षा से वंचित करने या आगे के शैक्षणिक करियर में बढ़ने से रोकने की अनुमति नहीं होगी। इसके अतिरिक्त, कॉलेज बीसीआई द्वारा निर्धारित न्यूनतम प्रतिशत से अधिक उपस्थिति मानदंड अनिवार्य नहीं कर सकते।

ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित
न्यायालय ने उपस्थिति नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए उपचारात्मक उपाय लागू करने का भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि तीन और पांच वर्षीय कानून की डिग्री देने वाले सभी संस्थान तत्काल प्रभाव से उपस्थिति से संबंधित कुछ उपायों को लागू करें। इन उपायों में साप्ताहिक आधार पर उपस्थिति की सूचना ऑनलाइन पोर्टल या मोबाइल ऐप पर प्रदर्शित करना, अटेंडेंस कम होने पर माता-पिता को मासिक सूचना भेजना, और न्यूनतम मानदंड पूरा न करने वाले छात्रों के लिए अतिरिक्त शारीरिक या ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित करना शामिल है। इस फैसले को कानून के छात्रों के लिए एक बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है।

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