लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि

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संपूर्ण राष्ट्र
आज राष्ट्र 'लोकमान्य' बाल गंगाधर तिलक की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। वह एक ऐसे राष्ट्रवादी चिंतक और महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्होंने अपने 'पूर्ण स्वराज' के अमर उद्घोष से संपूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया। तिलक ने अपने जीवन का हर क्षण स्वराष्ट्र, स्वभाषा और स्वसंस्कृति के सम्मान के लिए न्योछावर कर दिया, और उनका यह दर्शन एवं दूरदर्शिता आज भी हमें युगों-युगों तक प्रेरणा देती रहेगी।

बाल गंगाधर तिलक का राष्ट्रवादी दर्शन
बाल गंगाधर तिलक का राष्ट्रवादी दर्शन 'स्वराज' तक ही सीमित नहीं था, बल्कि इसमें 'स्वभाषा' और 'स्वसंस्कृति' को भी केंद्र में रखा गया था। उनका मानना था कि किसी भी राष्ट्र की असली पहचान उसकी अपनी भाषा और संस्कृति में होती है। उन्होंने जनता को एकजुट करने और स्वतंत्रता आंदोलन को एक जन-आंदोलन बनाने के लिए गणेशोत्सव और शिवाजी जयंती जैसे उत्सवों को सार्वजनिक मंचों में बदल दिया, जिससे समाज में एकता की भावना प्रबल हुई।

ब्रिटिश शासन और अदम्य साहस
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के अदम्य साहस और ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनके अडिग रुख के कारण जनता ने उन्हें 'लोकमान्य' की उपाधि दी। उन्होंने पत्रकारिता का सहारा लेकर 'मराठा' और 'केसरी' जैसे समाचार पत्रों के माध्यम से ब्रिटिश नीतियों की कड़ी आलोचना की। अपनी पत्रकारिता और राजनीतिक सक्रियता के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा, जिसमें बर्मा (आज के म्यांमार) की मांडले जेल में छह साल की सजा भी शामिल है, लेकिन उनकी देशभक्ति की भावना कभी कमजोर नहीं हुई।

शिक्षक, वकील और समाज सुधारक
एक संक्षिप्त परिचय बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था। वह एक शिक्षक, वकील और समाज सुधारक भी थे। 1880 के दशक में, उन्होंने डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की और पूना में फर्ग्यूसन कॉलेज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका प्रसिद्ध नारा, "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा," आज भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक सबसे शक्तिशाली और प्रेरणादायक नारा बना हुआ है। विचारों और कार्यशैली का आधुनिक भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उन्होंने स्वदेशी आंदोलन का समर्थन किया और स्वदेशी उत्पादों को अपनाने पर जोर दिया, जो आज भी आत्मनिर्भर भारत के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा है। उनका दृष्टिकोण यह था कि स्वतंत्रता केवल राजनीतिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक भी होनी चाहिए।

बाल गंगाधर तिलक की पुण्यतिथि
हमें उनके त्याग, साहस और राष्ट्रवादी विचारों को याद करने का अवसर देती है। उन्होंने राष्ट्र को जो दिशा दी, वह आज भी प्रासंगिक है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि अपने राष्ट्र, भाषा और संस्कृति के प्रति समर्पण ही किसी भी देश को महान बनाता है।



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