वैश्विक फैशन मंच पर दिखेगा कोल्हापुरी चप्पलों की विरासत भारतीय शिल्प का कमाल
कोल्हापुरी चप्पल: महाराष्ट्र के कोल्हापुर से एक ऐसी चौंकाने वाली खबर सामने आई है, जिसने भारतीय हस्तशिल्प को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दिलाने की उम्मीद जगाई है। इटली के प्रसिद्ध फैशन हाउस प्राडा की एक उच्च-स्तरीय टीम कोल्हापुरी चप्पलों के सदियों पुराने इतिहास और अद्वितीय शिल्प कौशल को सीखने के लिए कोल्हापुर पहुँची है। हाल ही में प्राडा के पुरुषों के संग्रह में कोल्हापुरी चप्पलों से मिलती-जुलती डिज़ाइन को लेकर उठे विवाद के बाद यह दौरा बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह घटना दर्शाती है कि कैसे भारतीय परंपरा और कारीगरी अब वैश्विक फैशन जगत की भी प्रेरणा बन रही है, और यह स्थानीय कारीगरों के लिए बड़े व्यावसायिक अवसर खोल सकती है। कोल्हापुरी चप्पल, महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर की एक प्रतिष्ठित हस्तकला है, जिसका इतिहास 13वीं शताब्दी से भी पुराना है। ये चमड़े की हाथ से बनी सैंडल अपनी मजबूती, आरामदायक फिटिंग और वनस्पति रंगों से रंगी हुई विशिष्ट बुनाई के लिए जानी जाती हैं। इन्हें स्थानीय कारीगर, जिन्हें 'चर्मशिल्पकार' कहा जाता है, अपनी पीढ़ियों की विरासत के साथ बनाते हैं।
2019 में इन्हें ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग भी मिला, जो इनकी विशिष्टता और क्षेत्रीय पहचान को प्रमाणित करता है। हाल ही में, प्राडा ने अपने स्प्रिंग/समर 2026 मेन्सवियर शो में कोल्हापुरी चप्पलों से मिलते-जुलते फुटवियर प्रदर्शित किए थे, लेकिन उन्होंने भारतीय कनेक्शन का कोई उल्लेख नहीं किया, जिससे भारत में फैशन समुदाय और पारंपरिक कारीगरों में भारी नाराजगी फैल गई थी। सांस्कृतिक विनियोग के आरोपों के बाद, प्राडा ग्रुप ने स्वीकार किया कि उनके संग्रह को भारत के जीआई-टैग वाले पारंपरिक फुटवियर से प्रेरणा मिली थी। इसके बाद, महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर (MACCIA) ने प्राडा से संपर्क किया, जिसके परिणामस्वरूप इस दौरे की योजना बनी।
कारीगरों से सीधा संवाद प्राडा की चार सदस्यीय तकनीकी टीम, जिसका नेतृत्व पुरुष तकनीकी और उत्पादन विभाग (फुटवियर डिवीजन) के निदेशक पाओलो टिवरॉन कर रहे हैं, मंगलवार को कोल्हापुर के सुभाष नगर पहुंची। यह सुभाष नगर कोल्हापुरी चप्पल निर्माण का एक प्रमुख केंद्र है। टीम ने कारीगरों के घरों और औद्योगिक बेल्ट में स्थित कारखानों का दौरा किया। उन्होंने चप्पल बनाने की प्रक्रिया, उपयोग किए जाने वाले चमड़े के प्रकार, सिलाई के तरीके और प्रति माह उत्पादित चप्पलों की संख्या जैसे सूक्ष्म विवरणों को समझा। उन्होंने कारीगरों से नमूने और तैयार चप्पलें भी लीं, जिनमें एक एंटीक जोड़ी भी शामिल थी। MACCIA के अध्यक्ष ललित गांधी ने बताया कि प्राडा इस विवाद के बाद स्थानीय कारीगरों के साथ मिलकर "मेड इन इंडिया" कोल्हापुरी-प्रेरित सीमित-संस्करण संग्रह लॉन्च करने की इच्छुक है। प्राडा ने पहले भी पेरू, जापान और स्कॉटलैंड में इसी तरह की 'मेड इन' पहल की है। यह साझेदारी कोल्हापुरी चप्पलों को वैश्विक बाजारों में ले जाने और इस प्राचीन कला को संरक्षित करने का एक बड़ा अवसर है। गांधी ने यह भी बताया कि अगस्त के पहले सप्ताह में प्राडा की एक और टीम, जो व्यवसायिक पहलुओं से जुड़ी है, कोल्हापुर का दौरा करेगी।
वैश्विक मंच पर भारतीय शिल्प का उदय 'मेड इन इंडिया' प्राडा जैसे वैश्विक लक्जरी ब्रांड का कोल्हापुरी चप्पलों के शिल्प में गहरी रुचि लेना भारतीय कारीगरों और हस्तशिल्प उद्योग के लिए एक बड़ी जीत है। यह न केवल कोल्हापुरी चप्पलों को वैश्विक पहचान दिलाएगा, बल्कि यह भी साबित करेगा कि भारतीय पारंपरिक कला और शिल्प में विश्वस्तरीय आकर्षण और गुणवत्ता है। यह दौरा सांस्कृतिक आदान-प्रदान और आर्थिक सहयोग का एक नया अध्याय खोल सकता है, जिससे स्थानीय कारीगरों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलेगा।