शक्ति, शौर्य और सत्य की विजय का महापर्व: दशहरा
विजय का उद्घोष दशहरा
जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति का एक ऐसा देदीप्यमान पर्व है जो शक्ति, शौर्य और असत्य पर सत्य की चिरंतन विजय का उद्घोष करता है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि राष्ट्र की वीरता, उल्लास और सांस्कृतिक विविधता का महापर्व है, जो अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को पूरे भारतवर्ष में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।यह पर्व दो महान ऐतिहासिक और पौराणिक घटनाओं के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है: पहला, भगवान राम द्वारा लंकापति रावण का वध, और दूसरा, देवी दुर्गा द्वारा दुष्ट दैत्य संस्कृति का पोषक दैत्यराज महिषासुर का संहार। दोनों ही कथाएं हमें यह सिखाती हैं कि धर्म और न्याय की स्थापना के लिए बुराई का दमन अनिवार्य है।
राजा रावण का वध
रामचरितमानस और जनमानस की मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने इसी दिन दुष्ट राक्षस राजा रावण का वध कर धर्म की स्थापना की थी। हालाँकि, वाल्मीकि रामायण और पद्म पुराण प्राचीन ग्रंथ, विशेषकर पद्म पुराण, रावण के वध की तिथि चैत्र मास की चतुर्दशी बताते हैं, लेकिन जनसाधारण में विजयादशमी ही राम की विजय के रूप में प्रतिष्ठित है।इस दिन को दशहरा कहने का एक अर्थ "दशहोरा" यानी दसवीं तिथि का उत्सव भी है, जो दस प्रकार के पापों—काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी—के त्याग की सद्प्रेरणा देता है।
धर्म की स्थापना
दशहरा पर्व का दूसरा महत्वपूर्ण आधार सनातन धर्म के शाक्त पंथ और देवी भागवत पुराण के अनुसार है, जहाँ इसे शक्ति-पूजा के रूप में मनाया जाता है। देवी दुर्गा ने नौ रात्रि और दस दिनों के भीषण युद्ध के बाद महिषासुर का वध किया था। यह दसवाँ दिन उनकी विजय का प्रतीक है, इसीलिए इस दशमी को 'विजयादशमी' कहा जाता है। दशहरा वर्ष की उन तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, जिन्हें किसी भी नए कार्य को शुरू करने के लिए पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं होती।
भारतीय संस्कृति में वीरता की पूजा
दशहरा अथवा विजयादशमी, चाहे भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए या देवी दुर्गा की पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह आदिशक्ति पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है, और हर्ष तथा उल्लास का पर्व है। दशहरा भारतीय संस्कृति में वीरता की पूजा और शौर्य की उपासना का पर्व है। इस दिन आयुध-पूजा या शस्त्र-पूजा का विधान है। राजा-महाराजा प्राचीन काल में इस दिन विजय की प्रार्थना करके रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। लेखकपरिचय कुमुद रंजन सिंह, सामाजिक चिंतक, विचारक, पत्रकार एवं अधिवक्ता ने इस रिपोर्ट को संकलित किया है।
























