सोलह कलाओं से युक्त चन्द्रमा, अलौकिक रात्रि: शरद पूर्णिमा

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आश्विन मास की शरद पूर्णिमा
धार्मिक मान्यता है कि इसी शुभ रात्रि में देवी महालक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जो भक्त जागकर उनका पूजन करते हैं, उन्हें समृद्धि और सद्गति का वरदान देती हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है, जिसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं। इस रात को ब्रह्मांड में एक अद्भुत संतुलन स्थापित होता है, जब चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है। यह रात्रि कोजागर व्रत और खीर की विशेष परंपरा के लिए प्रसिद्ध है, जिसका वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व है।

संपूर्ण सोलह कलाओं
ज्योतिष के अनुसार, वर्ष भर में केवल इसी तिथि पर चंद्रमा अपनी संपूर्ण सोलह कलाओं के साथ उदय होता है, जिससे उसकी किरणें अमृतमयी हो जाती हैं। प्रबुद्ध सोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. श्री प्रकाश बरनवाल के अनुसार, इसी कारण उत्तर भारत में इस रात खीर बनाकर पूरी रात चाँदनी में रखने और उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करने का विधान है। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इसी शुभ रात्रि को गोपियों के साथ महारास रचाया था। इस पूर्णिमा को कोजागरी या कौमुदी व्रत भी कहा जाता है।

जितेंद्रिय भाव
इस दिन भक्त विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखते हैं और जितेंद्रिय भाव से रहते हैं। इस दिन ताँबे या मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा करनी चाहिए। सायंकाल में चंद्रोदय होने पर, घी से भरे हुए अनेक दीपक जलाने का विधान है। खीर बनाकर उसे अनेक पात्रों में भरकर चंद्रमा की चाँदनी में रखा जाता है। एक प्रहर (तीन घंटे) बीत जाने के बाद उस खीर को लक्ष्मीजी को अर्पण कर निर्धनों और दीन-बन्धुओं को प्रसाद के रूप में खिलाया जाता है।

कोजागर व्रत
इस रात्रि की मध्यरात्रि में, देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं। वे मन ही मन यह संकल्प करती हैं कि 'इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है?' जो मनुष्य जागकर उनकी पूजा में लीन रहता है, माँ लक्ष्मी उसे धन देती हैं। इसीलिए इसे कोजागर व्रत कहते हैं, जिसका अर्थ है 'कौन जाग रहा है?' प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह व्रत माँ लक्ष्मी को संतुष्ट करता है, जो भक्त को इस लोक में समृद्धि देती हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में सद्गति प्रदान करती हैं।

पौराणिक कथाओं
प्रस्तुत आलेख पौराणिक कथाओं, धार्मिक ग्रंथों और विभिन्न मान्यताओं पर आधारित है। यह लेखक के स्वयं के विचार हैं, जिसका उद्देश्य केवल पाठकों को जानकारी प्रदान करना है। इन विचारों से किसी अन्य का सहमत होना आवश्यक नहीं है, और इसका उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं है। -अजय त्यागी

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